संजीत यादव
रांची: झारखंड की नौकरशाही में आज एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। राज्य की मुख्य सचिव अलका तिवारी 30 सितंबर को रिटायर हो रही हैं। उनके सेवानिवृत्त होने से पहले ही सत्ता और प्रशासनिक गलियारों में अगले मुख्य सचिव के नाम को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। यह फैसला न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से अहम होगा, बल्कि राजनीतिक समीकरणों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा। मुख्य सचिव का पद झारखंड की नौकरशाही का सबसे बड़ा पद है और इसे सत्ता संचालन का धुरी माना जाता है। ऐसे में यह तय करना कि अगला मुख्य सचिव कौन होगा, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए भी आसान नहीं है।
संभावित दावेदारों की सूची
वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों में कई नाम इस रेस में शामिल हैं। इनमें निधि खरे और शैलेश सिंह का नाम प्रमुख है, लेकिन ये दोनों अधिकारी फिलहाल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। ऐसे में उनकी दावेदारी कमजोर मानी जा रही है।दूसरी ओर राज्य में तैनात कई वरिष्ठ अधिकारियों के नाम भी चर्चा में हैं। इनमें अविनाश कुमार (मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव), अजय कुमार, वंदना डाडेल, सुरेंद्र सिंह और नितिन मदन कुलकर्णी के नाम प्रमुख दावेदारों के रूप में देखे जा रहे हैं।
अविनाश कुमार सबसे मजबूत दावेदार, पर…
मुख्यमंत्री के बेहद करीबी और भरोसेमंद अफसर अविनाश कुमार को इस रेस में सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है। अविनाश कुमार को झारखंड का सबसे पावरफुल आईएएस अधिकारी कहा जाता है। मुख्यमंत्री से उनकी सीधी पकड़ और प्रशासनिक कामकाज पर गहरी पकड़ उन्हें इस पद का सबसे मजबूत उम्मीदवार बनाती है। हालांकि चर्चा यह भी है कि अविनाश कुमार 2029 में रिटायर होंगे। ऐसे में वे अभी मुख्य सचिव का पद नहीं लेना चाहेंगे, क्योंकि इस स्थिति में उन्हें लंबे समय तक इस पद पर बने रहना होगा। नौकरशाही की परंपरा को देखते हुए यह भी संभव है कि वे फिलहाल इस पद से दूरी बनाए रखें और किसी विश्वसनीय अफसर को यह जिम्मेदारी दी जाए।
सेवा विस्तार की अटकलें
इन सबके बीच यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि मौजूदा मुख्य सचिव अलका तिवारी को सेवा विस्तार मिल सकता है। अलका तिवारी को एक सक्षम और अनुभवी अफसर माना जाता है, और अगर उन्हें विस्तार मिलता है तो यह मुख्यमंत्री के लिए भी एक सुरक्षित विकल्प होगा। इससे फिलहाल की स्थिति में किसी नए विवाद या असंतोष की संभावना भी कम हो जाएगी।
मुख्यमंत्री के फैसले पर टिकी निगाहें
झारखंड में प्रशासनिक फैसले हमेशा से राजनीतिक रंग लिए रहते हैं। इस बार भी नौकरशाही और सत्ता गलियारे दोनों की निगाहें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर टिकी हैं। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि वे अपने भरोसेमंद अफसर को आगे बढ़ाते हैं, किसी सीनियर को जिम्मेदारी सौंपते हैं या फिर अलका तिवारी को ही विस्तार देकर स्थिति को स्थिर रखने का प्रयास करते हैं।
फिलहाल राज्य के अफसरों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हर कोई यह जानने को उत्सुक है कि झारखंड का अगला मुख्य सचिव कौन होगा और मुख्यमंत्री किस रणनीति के तहत यह फैसला लेंगे। एक बात तय है कि यह निर्णय झारखंड की नौकरशाही की दिशा और दशा दोनों तय करेगा।