संजीत यादव
रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में दिये गए हलफनामे में तथ्य छुपाने एवं गलत सूचना देने के मामले में मांडू विधायक निर्मल महतो उर्फ तिवारी महतो की मुश्किलें बढ़ सकती है। पूर्व विधायक जयप्रकाश भाई पटेल की चुनौती पत्र के आधार पर जिला निर्वाची पदाधिकारी ने वर्तमान विधायक निर्मल महतो उर्फ तिवारी महतो को स्थिति स्पष्ट करने के लिए नोटिस भेजा है। नोटिस का तामिला चार अक्टूबर को हुआ है। जबकि जयप्रकाश भाई पटेल ने 8 अगस्त को निर्मल महतो के हलफनामें को चैलेंज करते हुए सवाल खडा किया है। विधायक श्री महतो की स्थिति स्पष्ट नहीं होती है तो उनकी विधायकी पर सवालिया निशान लग सकता है। मालूम हो कि मांडू विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक जयप्रकाश भाई पटेल की ओर से लगाए गए आरोपों के बाद चुनाव आयोग हरकत में आ गया है। जिला निर्वाचन पदाधिकारी ने विधायक को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है।
पटेल का आरोप है कि महतो ने चुनावी हलफनामे में 12 में से 2 आपराधिक मामले छुपाए, यानी जनता को अंधेरे में रखा। यदि जांच में यह आरोप सही साबित होते हैं, तो न सिर्फ विधायक की विधायकी रद्द हो सकती है, बल्कि जनता के साथ धोखा करने का मामला भी बन सकता है।
क्या कहता है कानून ?
कानूनी विशेषज्ञ अधिवक्ता अशोक यादव कहते हैं कि अगर जांच में तथ्य छुपाने की पुष्टि हो जाती है
तो यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125A के तहत दंडनीय अपराध है और निर्वाचन आयोग इसमें कोई फैसला ले सकता है। निर्मल महतो की विधायकी भी जा सकती है। कंप्लेनेंट यदि बहुत इंटरेस्टेड है ,तो हाई कोर्ट में रीट भी दायर कर सकता है। इसमें जनता को गुमराह करने का भी मामला बनता है। इस मामले में विधायक निर्मल महतो ने कहा है कि पूर्व विधायक का आरोप मनगढ़ंत और अनावश्यक है। हलफनामा में कुछ भी गलत नहीं है।
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सिर्फ कानूनी दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं। जिस तरह चुनाव में बेहद मामूली अंतर से जीत हासिल हुई है, वह विपक्ष को इस मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख अपनाने का अवसर देता है। यह मामला न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि सत्ताधारी दल की वैधता को भी चुनौती दे सकता है।
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