
संजीत यादव
रांची : कहावत है— “मन माया छाया रही, माया मिली न राम। एकहिं नाव सवार जो, सकुशल उतरा पार। जो दो दो नौका चढ़ा, डूब गया मझधार।” ठीक ऐसा ही हाल बिहार में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का हुआ। कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने झामुमो के साथ विश्वासघात किया, जिसके चलते पार्टी को बिहार विधानसभा चुनाव से ही किनारा करना पड़ा।
जानकारी के अनुसार, महागठबंधन के तहत कांग्रेस, राजद और झामुमो ने पहले चुनावी तालमेल बैठाया था। यही गठबंधन झारखंड में भी सफल रहा, जहां तीनों दलों के कोटे से मुख्यमंत्री और मंत्री बने। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद ने झामुमो को सीट बंटवारे में पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।
झामुमो नेताओं ने इसे “पीठ में छुरा घोंपने” के समान बताया। गठबंधन की भावना और आपसी समन्वय को ठेंगा दिखाते हुए दोनों बड़े दलों ने झामुमो को ठगा। नाराज झामुमो ने चुनाव से हटने का फैसला लिया।
सूत्रों के अनुसार, अब झामुमो आर-पार की रणनीति पर विचार कर रही है। चुनाव के बाद पार्टी ने समीक्षा बैठक बुलाने का निर्णय लिया है, जिसमें भविष्य की राह तय होगी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि झामुमो महागठबंधन से अलग होकर नया राजनीतिक अध्याय लिख सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन की आखिरी समय सीमा सोमवार दोपहर 3 बजे समाप्त हुई। इसी बीच झामुमो ने प्रेस बयान जारी करते हुए कहा महागठबंधन के भीतर समन्वय की कमी और लगातार उपेक्षा के कारण हमें संवाद के लिए आगे आना पड़ा। राजनीतिक चालबाजियों के चलते झामुमो को चुनाव से पीछे हटना पड़ा।
अब सबकी निगाहें झामुमो की समीक्षा बैठक पर टिकी हैं, जहां तय होगा कि क्या पार्टी कांग्रेस और राजद से नाता तोड़कर अपनी नई राजनीतिक कहानी लिखेगी।
