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जिंदा हो तो मोबाइल लाओ’: सरकारी व्यवस्था की शिकार गुंदी उरांइन की दर्द भरी कहानी सुन आंखों से आंसू नहीं रुकेंगे

रांचीः वो लौट रही हैं, घर लौट जाएगीं। सांसें चल रही हैं। कदम भी बढ़ रहे हैं आगे। फिर भी वो जिंदा नहीं है। सरकारी फाइलों में, बीडीओ साहिबा की निगाहों में, बैंकों की नजर में। गुंदी उरांइन घर चली गईं। उदास मन से। आज भी उसका काम नहीं हुआ। वो फिर आएगी। आती ही रहेगी। जब तक शरीर में आत्मा है, जिस्म में जान है। अपने होने का सबूत देती रहेगीं। जब वो थक जाएगी तो आना छोड़ देंगीं। सरकार के खजाने का हजार रुपए बच जाएगा। बीडीओ साहिबा का काम हल्का हो जाएगा। रांची के लापुंग प्रखंड कार्यालय का फर्श साफ रहेगा। कुर्सियां चमकती रहेंगी।दरअसल, राजधानी रांची से करीब 55 किलोमीटर लापुंग प्रखंड कार्यालय का ये दृश्य है। लेकिन इस तरह का दृश्य अन्य सरकारी कार्यालयों भी आमतौर पर देखने को मिलेगा। लापुंग प्रखंड कार्यालय में वृद्ध महिला गुंदी उरांइन पेंशन लेने आई हैं। 2010 में एसबीआई में खाता खुला तब से उसे पेंशन की राशि मिल रही है। तब कमर सीधी थी। आना-जाना आसान था। अब लाठी ही सहारा है। कई महीने से पेंशन की राशि नहीं मिली है। रांची के लापुंग की बीडीओ दफ्तर में वो कई किलोमीटर दूर उस गांव से आई हैं जहां मोबाइल का सिग्नल भी काम नहीं करता।गुंदी उराइंन का गुनाह सिर्फ इतना ही है कि उसके पास मोबाइल फोन नहीं। सिग्नल भी नहीं। मोबाइल फोन होता तो चलाती कैसे। उसे तो कुछ नहीं आता। गुंदी उरांइन और इन जैसी बुजुर्ग औरतों को अक्सर लापुंग के ब्लॉक ऑफिस में देखा जा सकता है। कुर्सी खाली रहती है। बुजुर्ग आदिवासी महिलाएं फर्श को ही नियति मान बैठ कर इंतजार करती हैं, झारखंड लोक सेवा आयोग की भारी-भरकम परीक्षा देकर कामयाब हुए अफसरों का। अफसर आती हैं। सीधी रेखा में उनकी निगाहें होती हैं। और चेंबर में बैठ जाती हैं। बहुत काम होता है उनको..ऑनलाइन मीटिंग, रांची और दिल्ली के अधिकारियों के सामने योजनाओं को जमीन स्तर पर पहुंचाने की बातचीत।गुंदी उरांइन फर्श पर बैठी रहती हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों का संदेश आता है, जिंदा हो तो मोबाइल लेकर आओ। ओटीपी आएगी तो लाइफ सर्टिफिकेट बनेगी। वो अपने बेटे का नंबर देती हैं। अफसर का संदेश आता है, साक्षात मोबाइल लाओ। गुंदी उराइंन और इन जैसी आदिवासी औरतें अफसर का कहा भगवान का कहा मान चली जाती हैं। लाठी का सहारा लिए। टेंपो किराया 50 रुपए लगे हैं। अब जाने में भी 50 रुपए देने होंगे।इस संबंध में जब लापुंग की प्रखंड विकास पदाधिकारी से बातचीत की गई, तो उन्होंने बताया कि पेंशन योजना के सभी लाभार्थियों का वेरिफिकेशन किया जा रहा है। इस काम में मोबाइल नेटवर्क की समस्या के कारण सभी से संपर्क नहीं हो पा रहा है, लेकिन जल्द ही सत्यापन का काम पूरा होने के बाद समस्या का समाधान हो जाएगा।फिलहाल गुंदी उराइंन ब्लॉक ऑफिस से घर लौट रही हैं। वो अपनी सहेली से यही कहती हुईं जा रही होंगी कि पुराना जमाना ही ठीक था जब इंसान की पहचान मोबाइल नंबर या ओटीपी से नहीं होती थी।

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